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कितनी समस्या है ?

मेरा पन्ना
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कीतनी समस्या है ? फिर चुनाव आ गया । अब जाना पड़ेगा भुखे – नंगे लोगों के सामने हाथ जोड़ने । उफ्फ….. कितनी गर्मी पड़ रही है । कितने मजे मे थे ए पाँच साल । पिछले बार तो मँत्री बनने से रहा लेकिन इस बार कोई न कोई जुगाड़ कर जरुर बनुंगा । आखिर राजनीति का असली मजा तो मँत्री बनने मे ही है । फलां तो मेरे ही साथ जीत कर आया था लेकिन अन्त मे पुरा दल बदलु निकला , अपनी पार्टी छोड़ बहुमत वाली पार्टी मे जा मिला और मँत्री बन बैठा । उसकी पत्नी भी अब विदेशी गाड़ीयों से घुमती है और साथ मे पुलिस वाले भी तो रहते हैं । उसे देख मेरी पत्नी मुझे ताने देती है “ पुरे नालायक हो तुम ! ” । एक वह जिसने अपनी नयी पार्टी बनाइ थी , वह तो गठबंधन का पुरा मास्टर निकला । अब कितनी हैसियत हो गई है उसकी । एक मामले मे जेल जाने से बच गया और तो और विदेशी बैंक वाले भी उसके आगे घिघियाते हैं , वहां भी उसके अकाउंट हैं । अभी नेताजी यह सब सोच ही रहे थे तभी अचानक किसी की आवाज सुन खयालों से जागे । यह उनके सहायक की आवाज थी जो क्षेत्र मे चलने के लिए कह रहे थे । चुनाव प्रचार भी तो करना था ।
“ कितनी समस्या है ? ” बोल नेताजी गाड़ी मे बैठे और फिर क्षेत्र मे निकल पड़े ।
नेताजी एक गाँव मे पहुँचे । गाँव मे हर ओर उन्हे समस्याओं का अंबार ही नजर आ रहा था ।
एक ग्रामीण ने देखते ही पूछ लिया – बड़े मुश्किल से आपके दर्शन हुए हैं नेताजी ! पांच साल तक तो हमारी याद भी ना रही आपको ?
नेताजी बड़े प्रफुल्लित हो बोले – ऐसा क्यों कह रहे हैं आप ? मै भुल सकता हुँ भला आप लोगों को ? आप तो मेरे घर के लोग हैं | आप ही लोगों ने तो मुझे वोट दे चुनाव जिताया , संसद मे भेजा । इसीलिए मैने भी निश्चय कर लिया था कि मै दिल्ली मे रहकर ही आप लोगों की समस्याओं को वहां रख सकूं । अब फिर चुनाव आ गया है , फिर जिताइए जिससे कि आप लोगों की समस्याओं को और जोरदार तरिके से वहाँ रख सकूं । अभी भी कितनी समस्या है यहाँ ?
एक लड़के ने कहा – हाँ ठीक कह रहे हैं नेताजी आप ! यह चुनाव न हुआ रिमांइडर हो गया । वैसे आप झूठ-मूठ मे परेशान होते हैं हमारी समस्याओं के लिए । देखिए समस्याएं तो जस की तस हैं और आपको भी हमारे खातीर अपना घर-बार छोड़ दिल्ली मे रहने का कष्ट झेलना पड़ता है । हम अपनी समस्याओं के लिए अब आपको और कष्ट नही देना चाहते , तो अब आप आराम ही कीजिए ।
नेताजी बोल उठे – अरे भाई ! मुझे अपने क्षेत्र की , आप लोगों की समस्याओं को देख बड़ा कष्ट होता है और आप लोगों के लिए दुसरे कष्ट झेलने के लिए मै तैयार हूँ । मुझे अपनी चिंता नहीं अपने क्षेत्र की चिंता है , आप लोगों की चिंता है ।
पास ही खड़े बुजुर्ग ने कहा – नेताजी मेरे तो बाल सफेद हो गए , बचे भी हैं तो थोड़े से । गाँव की सड़क देखिए , एक बार बनी थी लेकिन लगता है कि पहले वाली ही ठीक थी । बिजली भी उतनी ही आती है जितना महिने मे पूर्णमासी और तेज तो इतनी जलती है कि लालटेन भी कम्पटीशन कर ले । अगर गाँव मे कोई बिमार पड़ जाए तो दस कोस दूर जाना पड़ता है इलाज के लिए और वहाँ भी व्यवस्था खुद बिमार है , लंगड़ाते हुए चल रही है किसी तरह । मेरी तो उमर बित गइ अंगुठा लगाते लगाते , बच्चे जाते हैं गाँव के स्कुल मे लेकिन कोई पढ़ाने वाला नहीं वहां । एक ही हफ्ते मे कई ईतवार पड़ जाते हैं । पिछले बार भी आपने कहा था कि सब ठीक करवा देंगे पर आप तो खुद को ही ठीक करने मे लगे रहे हमारी सुध लेने की फुर्सत कहां है आपको ?
राजनीतिज्ञ वोटरों के मनोविज्ञान के चतुर ज्ञाता होते हैं । नेताजी समझ गए यह विरोध की हवा है ऐसे ना रुकेगी । एक मजबुत ढाल चाहिए इसके लिए । उन्होने वहीं खड़े एक छोटे बच्चे को गोद मे उठा लिया , फिर सबको समझाने लगे – यहां की दिकत्तें जानने ही तो आया हूं । देखिए मै सबसे पहले बोट मांगने आप ही लोगों के पास आया हूं क्योंकि हम लोग एक ही जाति-बिरादरी के हैं । अगर आप लोग दुसरे बिरादरी वालों को वोट देंगे तो क्या वो मान लेंगे कि आपने उन्हे वोट दिया ? नही ना ? तो फिर आप उन्हे वोट क्यों देंगे ? उनसे तो आपका भला भी नहीं होने वाला । वो आपका काम भी क्यों करेंगे । मै तो फिर भी आप लोगों के साथ खड़ा रहुंगा कोइ और पुछेगा आपको ? इसलिए मै कहता हूं कि वोट अपनी बिरादरी वालों को दिजीए , मुझे दिजीए । मै अपनी सभी माताओं-बहनो को साड़ी भिजवा देता हूं वो भी कढ़ाईदार , आप लोग मेरे साथ रहिए खाइए-पिजीए मौज उड़ाइए और वोट अपने घर के इस बेटे को ही दिजीए । नेताजी ने अपने सहायक से इन सब चीजों की व्यवस्था करने को कहा ।
हवा मे अफीम घुल चुका था , सब इसमे मदहोश हुए जा रहे थे । लोगों के ज्ञान की आँखे खुल रहीं थीं । प्रश्न अब शर्म का रुप ले आँखों मे उतर आए थे ।
अब नेताजी ने गोद मे लिए बच्चे को दुलारते हुए कहा “ कितना प्यारा बच्चा है यह ! “ फिर नाम पुछा । बच्चे ने भी तुतलाते , थोड़ा शर्माते अपना नाम बताया । तभी नेताजी को किसी ने ध्यान दिलाया कि बच्चे की तो पैंट ही गीली है । नेताजी पहले थोड़ा सकुचाए लेकिन फिर पुरी बत्तिसी दिखाते हुए बोल पड़े “ बड़ा बदमाश बच्चा है ! बताया भी नही । लेकिन कोइ बात नहीं सब बच्चे तो ऐसे ही होते हैं । ” और दस का नोट पकड़ा धीरे से उसे नीचे उतार दिया ।
जनता अपने नेता के इस बड़प्पन इतरा रही थी । यह बड़प्पन भी अपनी जाति का लगा ।
नेताजी को अब जाना था , दुसरे गाँव मे । वहां की समस्याएं देखने । लेकिन यहां के अपने लोगों को छोड़कर इतनी जल्दी जाना नहीं चाहते थे । जैसे कोइ मायके से ससुराल जा रहा हो । खैर जल्दी ही मिलने का वादा किया और गाड़ी मे बैठ चले गए । रास्ते मे ड्राइवर से कहा – जल्दी चलो ! अभी कई जगह माहौल बनाना है । कितनी समस्या है , ऐं ! उस बेहुदे बच्चे ने कुर्ता भी खराब कर दीया ।

खैर नेताजी भी खुश थे और गाँव वाले भी । सबकी समस्याओं का समाधान जो हो चुका था ।

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