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चुनावी होली

मेरा पन्ना
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इस बार की होली कोई साधारण होली नहीं है. | यह अपने साथ कई ग्रह – नछत्रों के मैच फिक्स कर आया है |
जो ग्रह एक साथ आने से भी कतराते थे अब एक साथ हैं | खैर बात हो रही है होली की | अब यह सौभाग्य है या दुर्भाग्य यह तो मुझे पता नहीं लेकिन इतना जरुर जानता हूँ कि अबकी यह होली बहुत मजेदार है | ऐसा क्यों ? क्योकि इस बार कि होली को हमारे परम आदरणीय , परम पूजयनीय नेता जी लोग अपने परम पावन क्रीणाओं से आनद दायक बनाने में जी – जान से लगे हैं |
अगर आप महंगी और मिलावटी चीजों से त्रस्त हैं तो कोई बात नहीं , यह होली चुनाव कि चासनी में डुबकी लगा कर आयी है | बस मुहं खोलिए और इंतजार कीजिये कि कब एक बूंद टपके जिससे आपका मन किसी स्वाद में खो जाये | अब यह स्वाद कैसा हो यह पूरी तरह से परिस्थितियों और नेता जी लोगों पर निर्भर है | यह मीठा भी हो सकता है, नमकीन भी और तीखा भी | और कभी – कभी तो पता ही नही चलेगा कि कौन सा स्वाद है | बस इतने से संतोष करना पड़ेगा कि मुहं में एक बूंद गिरी थी |
होली रंगो का त्यौहार है , लेकिन हमरे नेताओं को देश के लोगों कि बहुत चिंता है | तभी तो वो बेचारे होली कीचड़ से ही मनाना चाहते हैं और रंग , अबीर जनता के लिए छोड़ रहे हैं | महंगाई , भ्रस्टाचार , कालाधन , बेरोजगारी , कुपोषण , कृषि समस्याओं , आदि सबने रंग , अबीर के थाल सजाकर नेताओं के सामने आये | लेकिन नेताओं ने कहा ” ना भाई ना | हम इनसे खेल आनंद मनाएं और बेचारी जनता कुछ ना पाये | ऐसा हरगिज नहीं होगा | ”
बस अब सब रंग , अबीर जनता के हिस्से में हैं , और बेचारे नेता कीचड़ से ही होली खेल रहे हैं |
ए कीचड़ भी अजब – गजब के हैं | एक नेता पर कुछ कीचड़ गिर गया तो बेचारे नेता जी ” एडा ” बन गए | दूसरे नेता जी पर गिरा तो उनका सीना ही सिकुड़ गया | एक वेराइटी तो ऐसी कि तुरंत बता दे अमुक पुरुष है अथवा नही | लम्बी लिस्ट है इन कीचड़ों के वैराइटियों की | मेरी पूरी सहानुभूति है नेताओं के साथ |
नेताओं की कई टोलियां तैयार हैं होली खेलने को | एक टोली होली के रिहर्सल के लिए गयी दूसरे टोली की गली में | वो पहले से ही तैयार बैठे थे | उन्होंने ईंट – पत्थरों की बरसात कर दी छत पर से | पहली टोली के एक नेता ने मिमियाते हुए कहा आना हमारी गली होली खेलने , बताएंगे तुम्हे | अपनी गली में तो………………….|
इधर एक टोली में होली के पहले ही एक नेता ने विद्रोह कर दिया कि इस टोली में मेरी कोई दाल नही गलती | मै जा रहा हूँ उस वाली टोली में कम से कम वहाँ खिचड़ी तो पका सकता हूँ |
और अंत में एक नेता जी का फाग ……………………
……………………………
इस होली मोहे रंग ना भायो
मैं तो कीचड़ ही खेलूं
रे राधा रानी !
मैं तो कीचड़ ही खेलूं रे !
तू मोहे भले रंग दे आज रंगन से
रे राधा रानी !
मैं तो कीचड़ ही खेलूं रे !
झूमे दुनिया सारी
भांग के नशे में
मैं तो सत्ता के नशे में रे
रे राधा रानी !
मैं तो कीचड़ ही खेलूं रे !

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