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ओजोन संरक्षण और हम !

मेरा पन्ना
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वर्तमान में विश्व तमाम संकटों से ग्रस्त है | आतंकवाद , गरीबी , कुपोषण , आर्थिक संकट , बेरोजगारी , जैविक और रासायनिक हथियारों का बढ़ता जखीरा , इन सभी पर विश्व के हर मंच पर प्राय:बहस होती रहती है | लेकिन २१वि सदी के सबसे ज्वलंत मुद्दों में शामिल पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चा कम ही होती है |

जब प्रकृति अपनी तांडव लीला प्रारम्भ करती है , तब जाके हमारी नींद टूटती है और हम चीखना-चिल्लाना शुरू करते हैं | कुछ देर तक दोषारोपण करते है , योजनायें बनाते हैं और फिर सो जाते हैं | हमारे कथित विकास के रास्ते में ये मुद्दे रोड़े अटकाने लगते हैं | अंतत: हम इनकी तिलांजलि दे देते हैं |

ओजोन परत का बढ़ता क्षरण हमारे पर्यावरण की सबसे घातक समस्याओं में से एक है | क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन का बढ़ता उत्सर्जन इस समस्या को गंभीर बनाता जा रहा है | इस परत के लगातार हो रहे क्षरण से सूर्य की पराबैगनी किरणे बिना किसी रुकावट के पृथ्वी और मानव दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं | एक तरफ जहाँ पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा , ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं , पारिस्थितिकीय तंत्र में बदलाव होता जा रहा है तो वहीँ दुशरी तरफ मानवों में बढ़ते एलर्जिक रोग और तमाम शारीरिक और मानशिक परिवर्तन
समस्याओं को विकराल बनाते जा रहे हैं |

ऐसा नही की ए सब बातें हमारे लिए नई हैं या हम ए सब नहीं समझते | सब कुछ जानते हुए भी हम चुप हैं क्योकि इन सबके लिए हमारी बढती विलासिता जिम्मेदार है और हम इससे समझौता नहीं करना चाहते |

जब गॉड पार्टिकल (हिग्स बोसॉन – ब्रह्माण्ड के आधार शिला का मूल कण) की खोज (कुछ महीनो पहले महा मशीन के प्रयोग से प्राप्त ) होती है तो हम खूब खुश होते हैं ,लोगों को इसके लाभ गिनाते हैं और भविष्य में इससे जुड़े शोधों के कयास लगते हैं | लेकिन जब बात अपने वातावरण में घुलते हानिकारक , विषैले कणों की आती है तो हम सदैव ही मौन रह जाते हैं |

लम्बे समय से वैज्ञानिक हमें इन सब के प्रति सचेत कर रहे हैं और हम हैं की आराम से बैठे हैं | समस्या के बेहद गंभीर होने तक की प्रतीक्षा कर रहे हैं |

इन समस्याओं से निपटने के लिए जरुरी नहीं कि हम इससे जुड़े शोधों पर मंथन करें , जरुरी नहीं कि इसके लिए बड़ी मुहीम चलायें या फिर किसी बड़ी मुहीम से जुड़ जाएँ | निश्चित रूप से इनका इन समस्याओं के प्रति लोगों कि जागृति में बहुमूल्य योगदान है लेकिन इनकी प्रासंगिकता भी तभी है जब हम अपनी छोटी-छोटी आदतों में परिवर्तन कर बेहतर कल बनाने के लिए तैयार हो जाएँ |

कम उर्जा के खपत वाले इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का उपयोग करें , जरूरत न होने पर उपकरणों को बंद रखें , पोलिथिन का उपयोग करना बंद करें या धीरे-धीरे कम करते जाएँ , पेड़ लगायें , दुशरे लोगों से इनकी चर्चा करें और उन्हें भी इसके लिए प्रेरित करें | हमारी ए छोटी-छोटी कोशिशें ही कल के स्वस्थ भविष्य के लिए आधार स्तम्भ हैं | अन्यथा ओजोन संरक्षण दिवस और पर्यावरण दिवस भी महज खानापूर्ति बन के रह जाएँगे |

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