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हे भारत के भाग्य-विधाताओं !

मेरा पन्ना
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क्या टकराती नहीं तुम्हारे कानो से
उजड़ते आँचलों की पुकार ,
क्या मान नहीं तुमको
वीरों की आहुति पर ?
सिसक रही हैं इस
मिट्टी की सांसे,
और चुप्पी छाई है
तुम्हारे होठों पर ?
हे भारत के भाग्य-विधाताओं !
उफ़….अब शब्द भी तो
तड़प उठे हैं,
तुमको निष्फल उलाहने
दे-देकर |

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